प्रत्येक संचार का एक उद्देश्य होना चाहिए/होता है। संचार का सच होना जरूरी
नहीं है और ज्यादातर समय यह सच नहीं
भी होता है। संचार हमेशा लक्षित समूह को ध्यान में रखते हुए
किया जाता है- यह समुह, संचार के रूप के आधार पर श्रोता, दर्शक या पाठक का हो सकते हैं। संचार की
प्रसिद्धि इसकी आंतरिक सत्यता के बजाय लक्ष्य समूह पर इसकी प्रभावशीलता पर निर्भर
करती है। इसी अर्थ में "गीता" का उद्देश्य अर्जुन (आम आदमी)
को युद्ध (जीवन) के लिए तैयार करना था। गीता में जो कहा गया है वह सच है या नहीं है यह महत्वपूर्ण नही है पर इसकी महानता इस तथ्य पर निर्भर करती है कि
इसने अर्जुन के मन को बदल दिया। गीता आज भी प्रभावी रूप से
आधुनिक अर्जुन /कई-कई लोगों के दिमाग को
बदल देती है। यही बात बच्चों
को माता-पिता की सलाह, कनिष्ठ से वरिष्ठ की डांट और ज्योतिषी की
भविष्यवाणियों के बारे में भी कही जा सकती है। जरुरी नही कि कहा गया शब्द सत्य ही हो पर उसका उद्देश्य
वांछित प्रभाव पैदा करना होना चाहिये।
यदि हम यह देखना चाहते हैं कि लक्षित समूह पर आधारित संचार कैसे होता है, तो बस मुंबई के मराठी, हिंदी और अंग्रेजी समाचार पत्र पढ़ें ।
मराठी / गैर-मराठी मुद्दे
पर उनकी टिप्पणियां उनके अपने पाठकों के लिए हैं और जाहिर
तौर पर अलग-अलग और एक दूसरे के विपरित होती हैं। मुंबई में
कोई यह कहने की हिम्मत नहीं करता कि अमेरिका जाने वाला मुंबईकर वहाँ की अर्थव्यवस्था को नष्ट करता है पर वे यह जरुर कहते
है मुंबई की ओर पलायन कर आने वाली आबादी
मुंबई को नष्ट कर रही है । इस तरह के संचार इसलिये किये जाते हैं क्योंकि अधिकांश दर्शक/ पाठक मुंबईकर हैं और प्रवासी आबादी के बारे मे ऐसा
पढ़-सुनकर उत्साहित होते हैं। इसी तरह सेलेब्रिटीज के कमेंट अपने टारगेट
ग्रुप पर आधारित रहते हैं। अतः मराठी हस्तियां भी जिनकी लोकप्रियता मराठी आबादी पर निर्भर नहीं है-सचिन तेंदुलकर, आशा भोंसले आदि - वे,“सभी के लिए मुंबई” के पक्ष में बोलती हैं।
साठ और सत्तर के दशक में, हमारे नेता भारतीय आबादी को संबोधित करते हुए
विकास के अपने दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण की सलाह देते थे। पर उन्ही नेताओं ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जनसंख्या नियंत्रण के लिए
विकास सहायता की गुहार लगाई थी। शिक्षा में आरक्षण के कारण (खासकर चिकित्सा क्षेत्र में) गिरते स्तर पर टीवी वार्ता में चिल्लाने वाले विशेषज्ञों
(शहरी-मध्यम वर्ग से आने वाले और अपने स्वयं के समूह को संबोधित करने वाले) की NRI quota छात्रों (उन का स्तर SC/ST से भी कम होता
है) पर चुप्पी देखने लायक होती है।
इसी पकार, विवादों के मामले में, किसी मुद्दे को हल करने
के लिए किसी समूह या देश का रुख अपने प्रतिद्वंद्वी की तुलना में उनकी अपनी स्थिति
को दर्शाता है। पहले के समय में भारत ने एक कमजोर राष्ट्र के रूप में मुद्दों को
सुलझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन (Kashmir issue in UN-1948) मांगा था। पर अब अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत की स्थिति में सुधार के साथ वह अन्य देशों के साथ सीधी
और द्विपक्षीय बातचीत (Shimla Agreement-1971) की पहल करता है। यही बात घरेलू मुद्दों पर भी लागू होती है।
संचार का एक अन्य रूप पुरस्कार और सम्मान है; मूल रूप से ये किसी
व्यक्ति के गुणों और योगदानों का सम्मान हैं। पर प्रत्येक व्यक्ति
या समूह दूसरों का पुरस्कार और सम्मान अपनी अपेक्षाओं, लाभ और हानि आदि के आधार पर करता है। भारत द्वारा 1991 में विदेशियों के लिए
बाजार खोलने के बाद, मैंने मिस वर्ल्ड / मिस यूनिवर्स पुरस्कार
जीतने वाली भारतीय लड़कियों की संख्या में 5-6 साल की छोटी अवधि में अचानक वृद्धि
देखी ।इससे पहले मिस ऐश्वर्या रॉय 28 साल के अंतराल के बाद 1994 में दूसरी मिस वर्ल्ड बनीं थी पर उसके बाद पिछले सात साल में हमने चार
विजेता देखीं। इसका एक कारण विश्व कॉस्मेटिक उद्योग की भारतीय
बाजार में प्रवेश करने और स्वास्थ्य और सौंदर्य बाजार पर ध्यान
केंद्रित करके अपने स्वयं के उत्पाद को बढ़ावा देने की उत्सुकता हो सकती है। इसी
प्रकार डॉ. मनमोहन सिंह, (के गुणों को कम किये बिना) को जो सम्मान प्रशंसा आदि प्राप्त होती है वह अधिकतर मुक्त उद्यम के पैरोकारों
की ओर से होती है। ये पैरोकार
पूंजीवादी देश या हमारे अपने चैंबर ऑफ कॉमर्स आदि हो सकते हैं, जो उनकी नीतियों से लाभान्वित हुए हैं।
क्या अच्छा है और क्या बुरा है,
इस रूप में कई संचार खतरनाक
होते हैं। इनका उपयोग समाज के तथा कथित अच्छे के लिए, व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करने के लिए
किया जाता है। यह उन कृत्यों का महिमामंडन करने के रूप में है, जो मानव स्वभाव के विरुद्ध हैं,
और जिन पर मनुष्य आमतौर
पर कार्य करने से हिचकिचाएगा। पुराने दिनों में "सती" की पूजा इसी
श्रेणी में आती थी। इसीलिये राष्ट्र के लिए
मरना "शहादत" कहलाता है। कम उम्र में "दीक्षा या नन बनना" ब्रह्मचर्य की शपथ लेने का समान रूप से हर धर्म में महिमामंडन किया
जाता है। उच्चतम करदाता को सम्मानित करने के साथ भी यही सच है। उदाहरण सैकड़ों में
उद्धृत किए जा सकते हैं। आम आदमी के ध्यान मे यह नहीं आता कि इन अच्छी बातों के प्रचारक इन अच्छी बातों का स्वंय अनुसरण नहीं करते
हैं। अमीर/नेता परिवार से अधिकाशंतः कोई भी शहादत या ब्रह्मचर्य स्वीकार करने के
लिए नहीं जाता है। ये सभी कृत्य गरीब और अशिक्षित व्यक्तियों के लिए आरक्षित
हैं।
फिर ऐसे संचार भी हैं जिनके लिए कोई सबूत नहीं है, जबकि समाज में इन संचारों के लिए कोई विरोध भी नहीं है। यह माना जाता है
कि मानव जीवन, जीवन का सबसे मूल्यवान और उच्च रूप है; हिंदुओं में यह माना जाता है कि यह जीवन पवित्र कर्मों (पुण्य कर्म) के कारण
है और यह बहुत दुर्लभ है। लेकिन, जिस तरह से मनुष्यों कि संख्या
बढ़ रही है और वे अन्य प्रजातियों को दुर्लभ बना रहे हैं हमें अपनी राय को
संशोधित करना पड़ सकता है। स्वंय को अन्य से
विशेष मानने का दुष्परिणाम यह है कि इससे अन्य प्राणीयों का विनाश होता है।
यदि हम यह कह सकें कि जीवन के सभी रूप समान हैं और प्रकृति के अभिन्न
अंग हैं, तो हमारा दृष्टिकोण भिन्न हो सकता है। इसी तरह स्वतंत्र वैश्विक जनमत सर्वेक्षण
के बिना सभी भारतीय एकमत से दावा करते हैं कि भारतीय संस्कृति और परंपरा कई कमियों
के बावजूद महान हैं। (यह विषय एक अलग लेख का विषय है)
संचार का एक और रूप तर्क की भ्रांति का कारण बनता है। लगभग हर बच्चा इस धारणा
के साथ बढ़ता है कि "सूर्य आकाश में उगता है" । बाद में, उसे पता चलता है कि सूर्य अपनी स्थिति में है और पृथ्वी उसके चारों ओर घूमती
है। आजकल का सबसे आम नारा है "पृथ्वी बचाओ"। तथ्य यह है कि पृथ्वी किसी
भी तरह से तापमान में 1-2 डिग्री वृद्धि और गिरावट से प्रभावित नहीं है, पूर्व में भी यह तापमान में
अधिक गंभीर बदलावों से भी बची हुई है। तापमान वृद्धि से वास्तव
में उस पर आधारित वनस्पति और जीव, और अन्ततः मानव जीवन
प्रभावित होता है, । इसलिए नारा होना चाहिए "खुद को
बचाओ"। इसी तरह कई बार दार्शनिक और लेखक अपने कार्य को आगे बढ़ाने
के लिए नए सिद्धांतों का प्रचार करते हैं। उदाहरण के लिए, समर्थ रामदास ने जब प्राकृत मराठी में उपदेश और लेखन शुरू किया, तो उन्होंने कहा "ज्ञान, ज्ञान ही है", इसे किसी भी भाषा में स्वीकार किया जाना चाहिए।
अंत में, कौन सच बोलता है और कौन झूठ बोलता है, यह धारणा (Perception) का विषय है। आम तौर पर यह माना या कहा जाता है
कि आम लोग झूठ बोलते हैं, और उच्च अधिकारी सच बोलते हैं। लेकिन यह हमेशा
सच नहीं होता है। तथ्य यह है कि संचार के इच्छित प्रभाव की इच्छा जितनी अधिक होगी, संचार छलावरण (communication camouflaging) यानी सत्य से विचलन (deviation from truth) की संभावना उतनी ही अधिक होगी । सभी विज्ञापन इस श्रेणी में आते हैं और इसलिए परिपक्व व्यक्ति उनसे अधिक प्रभावित नहीं होते हैं। लेकिन, राज्य प्रतिनिधियों के संचार के बारे
में क्या कहें (जिनसे सत्य बोलने
कि अपेक्षा होती है) ? इराक के खिलाफ युद्ध की
तैयारी के दौरान, यूएसए ने इराक के साथ "बड़े पैमाने पर
विनाश के हथियार" के कब्जे का प्रचार किया। यह एक सरासर और जानबूझकर किया गया झूठ निकला। इसी पकार हिटलर ने “आर्यो” को शुद्ध इंसान
घोषित किया था । इतिहास ऐसे झूठे और विवादास्पद कथानको से भरा पड़ा है, जिन्होने इतिहास के अर्थ को ही बदल दिया है।
अतः किसी भी कम्मुनिकेशन को स्वंय परखे या अनुभव किये बिना उसे सत्य ना माने ।
इसकी संभावना अधिक है कि यह सत्य न होकर इच्छित प्रभाव उत्पन्न करने का एक हथकण्डा
मात्र हो ।