उच्चतम स्तर पर ब्रह्मांड,
अव्यक्त, अदृश्य तथा संपूर्ण रुप से एक है पर इसका दृश्य भाग विविधता प्रदर्शित करता है। सरलता के लिए हम कह सकते हैं, प्रकट संसार में दो अलग-अलग
लक्षण होते हैं । प्रश्न है-ये अलग-अलग लक्षण या परिघटनाएं (phenomena) एक-दूसरे के विपरीत हैं या पूरक हैं? क्या प्रकाश का फोटॉन (Particle) सिद्धांत और तरंग (Wave) सिद्धांत एक दूसरे का विरोध कर रहे हैं या
प्रकाश के सभी गुणों की व्याख्या करने के लिए एक दूसरे के पूरक हैं? लाल और बैंगनी रंग विपरीत हैं या पूर्ण रंग सफेद बनाने के लिए पूरक हैं?
जीव विज्ञान में, हम (जानवर) ऑक्सीजन
लेते हैं और पौधे कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं, तो क्या हम
और पौधे एक दूसरे के विपरीत हैं, या एक दूसरे के पूरक हैं? वानस्पतिक विकास को संभव बनाने के लिए गर्मी में हम बारिश की कामना
करते हैं पर बरसात में हम सूरज के चमकने की प्रतीक्षा करते
हैं। इस प्रकार हमें दोनों मौसमों की आवश्यकता होती है। यह प्रकृति की
विविधता ही है जो हमें बड़ी संख्या में भिन्न- भिन्न घटनायें, वनस्पतियां और जीवों को उपलब्ध कराती
है। अतः
निष्कर्ष है कि प्रकृति में सभी एक दूसरे के पूरक है और वे हमारे जीवन को सुंदर और समृद्ध बनाते हैं।
प्रकृति और विज्ञान के उपरोक्त उदाहरणों में हमने आसानी से स्वीकार किया कि विपरीत
वास्तव में पूरक हैं । लेकिन जब हम व्यक्ति, समाज, राष्ट्र के बारे में विचार और बहस करते हैं तो दो अलग-अलग अवधारणाओं, सिद्धांतों, व्यवस्थाओं आदि को हम एक दूसरे के पूरक कहने की बजाय विपरीत-विरोधी के रूप में पेश करते हैं। हम सही हैं, दूसरा गलत है। मानव मन (अहं/इगो
के कारण) ऐसी स्थितियों में समानता को नजर-अंदाज कर विपरीतता को
उजागर करता है । इस तरह यह, जहां नहीं है, वहां भी विरोधी या दुश्मन पैदा
कर देता है । इसी तरह, एक ही स्थिति के बारे में हमारे मन में दो धारणाएँ (perception) हो सकती हैं। जीवन की विपरीत परिस्थितियों को लें, इसे हम हमारे गुणों को ऊपर आने में
मदद करने के रूप में या हमारे रास्ते में बाधा डालते हुये मान सकते हैं। रामायण में, रावण और वे सभी पात्र, जो एक तरफ
नकारात्मक (राम का विरोध करते हुए) प्रतीत होते हैं, सकारात्मक (राम) की महिमा करने के लिए भी माने जा सकते हैं।
वास्तव में परस्पर क्रिया करने वाली प्रणालियों-संस्थाओं के बीच
समानता उनके मतभेदों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, और मतभेद केवल सृजन की प्रक्रिया को उत्प्रेरित (catalyze)
करते हैं। इस प्रकार पूरक प्रणालियों की भिन्न- भिन्न विशेषताएं दो जटिल
प्रणालियों या प्रक्रियाओं के बीच रचनात्मक सहयोग कर उन्हें सरल
और अधिक फलदायी बनाती हैं । अतः इन दोनों प्रणालियों को
विपरीत नहीं माना जाना चाहिए। पर हम इस प्रकार व्यवहार करते हैं
कि “आप मेरे साथ नही हैं तो आप मेरे विरोध मे
हैं’। इस प्रकार, अपेक्षाकृत तुच्छ अन्तरों (minor
differences) के आधार पर विरोधी समूह बनाये जाते हैं,
जैसे पुरुष-महिला, अश्वेत-गोरे, विकलांग-सक्षम । इस कारण से ही सर्वहारा वर्ग, कट्टरवाद, नारीवाद, सकारात्मक
कार्रवाई आदि पनपते हैं और यह नस्लवाद, रंगभेद आदि की ओर एक छोटा गलत कदम होता है। सही-गलत, समर्थक-विरोधी की धारणा से उत्पन्न, इस तरह की कई
समस्याएं मानव जाति को त्रस्त कर रही हैं।
इस संबन्ध में हम सर्व परिचित पुरुष-महिला संबंधों
पर चर्चा करें। क्या वे एक दूसरे के विपरीत हैं या पूरक हैं? शारीरिक बनावट के कारण हमें लगता है कि पुरुष और
महिलाएं विपरीत हैं। लेकिन इस कारण से ही, वे एक दूसरे के साथ संबंध रखते हैं और परिवार बनाते हैं। यह सामंजस्य केवल दो पूरक प्राणियों के बीच
हो सकता है, विपरीत में नहीं। मेरे मित्र ने मुझे बताया कि अपने वैवाहिक
जीवन के पहले दस वर्ष वह ईश्वर को इसलिये कोसता था की उसकी पत्नी उसके जैसी नहीं है । लेकिन अब पिछले
तीस साल से, पत्नी उसके जैसी नहीं है
इसलिये वह ईश्वर को धन्यवाद दे रहा हैं । अपने जीवनसाथी को अपने पूरक के रूप में सोचने की कोशिश करें, न कि आपके
विपरीत। मुझे यकीन है कि यह आपके वैवाहिक जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा।
अब देखते हैं कि यह भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण(पूरक-विपरीत), निर्णय लेने की
पूरी प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि मैं अकेले
टी शर्ट खरीदता हूँ, तो मैं सादा सफेद टी शर्ट खरीदूंगा, लेकिन पत्नी
कहती है, सफेद जल्द ही चमक खो देगा और आपको कुछ-डार्क शेड
खरीदना चाहिए। उसका विचार मेरे विचार का विरोध है या
मेरी खरीद के कुल मूल्य (value) को बढ़ाने के लिए मेरे
विचार का पूरक है? इसके अलावा, अगर बेटा हमारे साथ आता है, तो उसका विचार और भी अलग होगा। यद्यपि उनकी सलाह टी शर्ट खरीदने के मेरे
निर्णय में बाधा और देरी करती प्रतीत होती है, पर प्रत्येक की सलाह को उचित महत्व देकर, मैं अपनी खरीद में मूल्य(value) बढ़ा सकता हूँ । हमें इस विचार को (की भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण विपरीत न होकर पूरक
है और बातचीत के माध्यम से लिया गया निर्णय श्रेष्ठ होगा) हमारे सामाजिक समूह, राजनीतिक दलों और राष्ट्र तक बढ़ाना चाहिये ।
वास्तविकता यह है कि सभी
(मानव निर्मित) व्यवस्थाएं अपने साथ कुछ सकारात्मका और कुछ नकारात्मका लाती हैं और इसलिए कोई भी व्यवस्था
(सामाजिक, राजनीतिक कानूनी आदि) इतनी व्यापक नहीं होती कि वह संपूर्ण मानव जाति की आवश्यकता को पूरा करती हो और सभी समय उनका मार्गदर्शन करती रहे । इसके साथ ही कुछ
समय पश्चात उस व्यवस्था के अनुयायी
ही (वर्तमान व्यवस्था से वर्तमान आवश्यकता पूरी होने के बाद कुछ नया चाहने से) इसे त्याग देंते हैं । इसलिए हर व्यवस्था, स्थापना के समय से ही अपने विनाश के बीज भी लाती है। ऐसे उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है- ब्रिटिश शासन के तहत भारत में भिन्न-भिन्न वायसरायों ने शासन संबन्धी क्रमशः उदार-कठोर, और
तटस्थ-विस्तारवादी एजेंडे को अपनाया था। हमारी पहली पंचवर्षीय
योजना- कृषि उन्मुख, ने उद्योग उन्मुख दूसरी पंचवर्षीय योजना का मार्ग प्रशस्त किया। इसलिए टेनीसन
ने लिखा है- नई व्यवस्था को जगह देने (के लिये) पुरानी व्यवस्था बदल जाती है, और परमेश्वर स्वयं को अनेक प्रकार से अभिव्यक्त करता है, अन्यथा ऐसा न हो कि एक
अच्छी प्रथा दुनिया को भ्रष्ट कर दे।
उपरोक्त चर्चा के आधार पर अब हम सार्वजनिक जीवन/नीति निर्माण में "निर्णायक
होने (Decisive- Strong Leader)" की एक देखी गई विशेषता के सकारात्मक और
नकारात्मक पक्ष का विश्लेषण करें। यह उन लोगों को संदर्भित करता
है जो मुख्य रूप से बुद्धि के बजाय जुनून और विश्वास के आधार पर काम करते हैं। वे
किसी चीज के बारे में दृढ़ता से विश्वास करते हैं और उनके लिये दूसरे दृष्टिकोण को देखना मुश्किल होता हैं। अब प्रत्येक नीति निर्माता के सामने एक विकल्प होता है
कि वह विकल्प A या विकल्प B को चुने। पर वह हमेशा यह नहीं जानता कि भविष्य में क्या होगा, और परिणाम की संभावनाओं की जांच करने के लिए उसके पास सीमित क्षमता (स्वयं के पूर्वाग्रह और झुकाव आदि के कारण) होती है। पुनः उसके स्वभाव के कारण भिन्न दृष्टिकोण
रखने वाले व्यक्ति उसके अधीन-साथ काम नहीं करते और वह उन लोगों से घिरा होता है जो उसका विरोध नहीं करते। यह परिस्थिती नीति निर्माण में गलतियाँ पैदा करती है और वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है। उसके बनाये (सही-गलत) नीति-नियम भी केवल तभी तक जारी रहते है जब तक उसके अनुयायी बहुसंख्यक या किसी न किसी रूप में शक्तिशाली होते हैं।
इस दृष्टिकोण से, "निर्णायक" होना हमेशा सकारात्मक गुण नहीं है।
निष्कर्ष यह है कि कोई भी सामाजिक व्यवस्था और इंसान पूर्ण नहीं है और वर्तमान व्यवस्था की उपलब्धि चाहे
जितनी भी बड़ी हो, भागीदार/लाभार्थी हमेशा किसी न किसी कमी को महसूस करेगा और परिवर्तन के लिए प्रयास करेगा । अतः यदि कोई व्यक्ति, सामाजिक या राजनैतिक व्यवस्था अपनी बनाई नीति के लिए जीवन का विस्तार (Increase in Shelf life for
policy) करना चाहती है तो विपरीत
दृष्टिकोण को कुचलने के बजाय
उसे पूरक मानकर, अन्य व्यवस्था-दृष्टिकोण के साथ बातचीत (interaction) कर, उन्हें अपने में समाहित (Co-opt) करना बेहतर होगा।
लेकिन अफसोस, विरोध की
अवधारणा (और इसे कुचलना) हमारे समाज में गहराई से समाई हुई है। हम जीवन के शुरुआत से ही चीजों को विपरीत जोड़ियों में वर्गीकृत करते
हैं। इस तरह के दृष्टिकोण ने निराशाजनक संघर्ष को जन्म दिया जिसको हम आज अनुभव कर रहे हैं पर हम अगली पीढ़ी को विरासत मे देना नही
चाहेगें।
अतः इसे बदलना हमारे
वर्तमान से अधिक उनके भविष्य के लिये बहुत जरुरी है और हमें उन्हें विपरीत के बजाय पूरक और तालमेल के बारे में सिखाना चाहिए।
हमें उन्हें यह सिखाना चाहिए कि स्त्री-पुरुष, दिन-रात, श्वेत-श्याम, हमारी भाषा
बोलने वाले लोग और जो हमारी भाषा नहीं बोलते, आदि एक-दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं। उन्हें यह सिखायें की समाज-दुनिया को दो शिविरों (सही-गलत) में विभाजित नहीं किया जा सकता है। इस तरह वे उन लोगों को समझने, उनकी सराहना करने और उनके साथ साझा
कार्य करने में सक्षम होंगे जो उनसे अलग दिखते और सोचते हैं, लेकिन प्यार, शांति, न्याय और सुंदरता के लिए उनकी अपनी चिंताओं का बड़ा हिस्सा साझा करते हैं।
विशेष, इस तरह -दो
पूरक
व्यक्तियों, संगठनों आदि द्वारा मिलकर काम करने से प्राप्त
सफलता, ऊर्जा या शक्ति(Synergy of Compliments), अकेले काम करने से प्राप्त सफलता, ऊर्जा या शक्ति
के योग से अधिक होगी ।
Yes, I do agree that Win Win Approach is always helpful. Synergy between like & alike minded people increases productivity. Rather it’s a part & parcel of life. Good Analysis. Regards.
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